गुरुवार, 2 अक्तूबर 2008

इक्कीसवीं सदी के अनुभव

इस चंचल इक्कीसवीं सदी
के अनुभव को मैं कला में ढाल नहीं पाता
साँचे में ढाल नहीं पाता
इसीलिए, सोचता हूँ –
मैं कविताएं नहीं लिख पाता।
10.02.2006

विचरना मीरा के देश में ख़रामा-ख़रामा

विचरना मीरा के देश में ख़रामा-ख़रामा -आनंद पांडेय मीरा भक्ति-आंदोलन की सबसे समकालीन लगनेवाली कवयित्री हैं। वे आज भी हमारे मन-मस्तिष्क को...