राजनीति से बाहर हो गया है मनुष्य— "मानुष-सत्य' बच गया हे केवल मनुष्य का कुल- गोत्र धर्म-कर्म यानी -- राजनीति के जगत से मनुष्य अपनी केंचुल / अपनी ऊपरी पहचान को छोड्कर कहीं और चला गया है. मैं खोजता हूँ..... कहाँ गया और क्यों ? लेकिन, देखता हूँ आदमी का चला जाना नहीं उसकी केंचुलें और पहचानें राजनीति का मुद्दा बनी हुई है.
१०.०२.२००६