सोमवार, 18 अप्रैल 2011

संघ को गुस्सा क्यों आता है?

संघ को गुस्सा क्यों आता है?

कॉंग्रेस महासचिव राहुल गांधी द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और सीमी को सामान रूप से साम्प्रदायिक बताये जाने से उपजे विवाद पर आनंद पांडे की टिप्पणी. श्री पांडे कॉंग्रेस के छात्र संगठन के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव रहे हैं और जेएनयू में शोधरत हैं. उनसे anandpandeymail@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.

आनंद पांडे

कुछ दिन पहले मध्य प्रदेश यात्रा के दौरान अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव राहुल गाँधी द्वारा आरएसएस की तुलना सिमी से करने पर समूचा संघ परिवार बौखला गया है. इस बौखलाहट की वजह यह है कि जिस सिमी का विरोध कर संघ परिवारी अपनी राष्ट्र भक्ति का रंग चोखा करते थे उसी सिमी से संघ की तुलना उसे अप्रत्याशित क्षति पहुंचा सकती है. भारत और दुनिया के अकादमिक जगत के लोग, नेता और पत्रकार सभी संघ की स्थापना से लेकर अब तक यह कहते रहे की संघ एक सांप्रदायिक,फासीवादी और भारतीय संविधान की भावना के विरुद्ध खड़ा संगठन है. आज भी संघ के इस घातक चरित्र पर किसी को संदेह नहीं है. समय-समय पर उसकी असलियत को उजागर करने वाले बयान और लेखन आते रहते हैं, बावजूद इसके संघ अपनी चाल में चलता रहता है. एक वैचारिक संवेदनहीनता और निष्ठुरता की प्रवृत्ति की वजह से वह इनसे अधिक घबराता भी नहीं है. लेकिन राहुल गाँधी के बयान के बाद संघ परिवार न केवल घबराया है बल्कि अन्दर तक हिल गया है. वजह यही हो सकती है कि संघ पर टिप्पणी करने वाला व्यक्ति कोई साधारण राजनेता नहीं बल्कि गाँधी-नेहरु परिवार के साथ- साथ कांग्रेस की सवा सौ साल पुरानी विरासत का वाहक और युवाओं में अत्यंत लोकप्रिय जुझारू नेता है. उनकी व्यक्तिगत और राजनीतिक साख देश-दुनिया में संघ परिवार से कई गुना अधिक है. इसीलिए यह टिप्पणी उसके लिए एक भारी हमले की तरह है जो युवाओं में उसकी लोकप्रियता को ख़त्म कर सकती है. और इसीलिए संघ गुस्से में है, संघ परिवारी न केवल सार्वजनिक तौर पर इसका अभद्र और अमर्यादित विरोध कर रहे हैं बल्कि मिलने पर कांग्रेसियों से निजी तौर पर अपने गुस्से का इजहार कर रहे हैं. इस राजनीतिक गुस्से और कुंठा का सच जानना जरूरी है.

संघ की विचारधारा और कार्यक्रमों को सिमी की विचारधारा और कार्यक्रमों से मिलाकर देखें तो राहुल गाँधी ने जो कहा है वह न केवल सौ प्रतिशत सच है बल्कि ऐसा सच जिसे कहने की कोशिश संघियों के हिसाब से अब कोई नहीं कर सकता. यह बयान उनकी परिपक्व राजनीतिक समझ को भी दर्शाता है. जो संघ परिवारी उन्हें भारतीय संस्कृति और आरएसएस के बारे में पढ़ने की सलाह दे रहे हैं उन्हें यह मालूम होना चाहिए कि जो व्यक्ति आरएसएस, सिमी, फंडामेंटलिज्म और भारतीय संस्कृति को जानता होगा वही ऐसा बयान दे सकता है.

संघ (राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ) का लक्ष्य है, भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना तो सिमी(स्टुडेंट्स इस्लामिक मोवमेंट ऑफ़ इण्डिया) का लक्ष्य है, भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाना. भारत के संविधान के अनुसार क्या इस तरह के लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्ध संगठन सक्रिय रहने चाहिए? आरएसएस अपने लक्ष्य के लिए जहाँ हिन्दुओं को खतरे में दिखाकर तथा अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिन्दुओं में जहर भरता है वहीँ सिमी इस्लाम को खतरे में दिखाकर तथा हिन्दुओं तथा अन्य धर्मावलम्बियों के खिलाफ मुसलमानों में जहर भरता है. साधारण से साधारण भारतीय भी इस तथ्य से परिचित है. ये दोनों संगठन जो करना चाहते हैं और जिस तरह से करना चाहते हैं, राजनीति शास्त्र में इसे ही फंडामेंटलिज्म कहा जाता है. अब अगर राहुल गाँधी ने आरएसएस को सिमी की तरह फंडामेंटलिस्ट संगठन कहा है तो इसमें गलत क्या है? इसमें उनका ज्ञान और राजनीतिक समझदारी दिखती है अज्ञान नहीं. अज्ञान तो उनका दिखता है जो उन्हें भारत को जानने की सलाह दे रहे हैं. अगर आरएसएस को सिमी से तुलना खराब लगती है तो उसे अपने को बदलना चाहिए. ज्ञान और भारतीयता के ढोंग से असत्य का प्रचार कर भारतीयों को गुमराह नहीं करना चाहिए.

संघ परिवारी यह नहीं बता रहे हैं कि संघ और सिमी में क्या-क्या फ़र्क हैं. बस एक ही फ़र्क गिना रहे हैं कि सिमी प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन है, आरएसएस नहीं. वे फिर एक झूठ बोल रहे हैं. माना आज आरएसएस प्रतिबंधित नहीं है लेकिन भारत सरकार सिमी की तरह ही इसको भी एक से अधिक बार प्रतिबंधित कर चुकी है. आरोप कुछ- कुछ वैसे ही थे. एक सबसे जघन्य आरोप था- महात्मा गाँधी की हत्या का. ऐसा जघन्य आरोप तो सिमी पर कभी नहीं लगा. फिर, राहुल गाँधी ने सिमी से आरएसएस की समानता की तो गलत क्या किया? समय आ गया है कि राहुल गाँधी पर हमला बोलने की बजाय संघ एक-एक करके देश को बताये कि वह सिमी से किस तरह अलग है.

अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए दोनों संगठन जो कार्य-पद्धति अपनाते हैं उसमें भी कई समानताएं हैं. भाजपा के माध्यम से संघ ने संसदीय राजनीति में जगह तो बनाई है लेकिन, अन्य घटकों की राजनीति को किसी भी मायने में संसदीय नहीं माना जा सकता है. स्वयं संघ का संगठन और सांगठनिक आदर्श सैन्यीकृत है. हिटलर और मुसोलिनी की कार्य-पद्धति उन्हें आदर्श लगती है. गुजरात में मुसलमानों के विरुद्ध भाजपा ने राज्य प्रायोजित आतंकवाद का नया चेहरा देश के सामने रखा. इसे पूरे संघ परिवार ने मिलकर अंजाम दिया था. गुजरात नरसंहार क्या आतंकवाद नहीं था? क्या सिमी ऐसा कर पाई है? बाबरी मस्जिद विद्ध्वंश का काम संघ परिवारियों ने किया. इस विद्ध्वंश ने देश के संवैधानिक ढांचे को चुनौती देने का काम किया.क्या यह आतंकवादी गतिविधि नहीं थी. क्या सिमी के ऊपर ऐसा कोई आरोप है?

अजमेर स्थित ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह विस्फोट का मामला हो या मालेगांव बम विस्फोट का मामला दोनों आतंकवादी घटनाएँ हैं और इन्हें अंजाम देने वाले संघ परिवारी ही थे. ये घटनाएँ वैसी ही थीं जैसी इस देश की संसद या मुंबई हमले की घटनाएँ. अगर राहुल गाँधी ने आरएसएस की समानता सिमी से की तो क्या गलत किया? उन्होंने एक राजनीतिक सच्चाई को अभिव्यक्त किया है जिसके लिए सभी धर्मनिरपेक्ष और अमन पसंद लोगों को उनकी तारीफ करनी चाहिए.

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